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उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रवाद पर दिया जोर, कहा- भारत के वैश्विक उत्थान के लिए यही एकमात्र रास्ता

Report by manisha yadav

दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नेतृत्व को राष्ट्रवाद से गहराई से जुड़ा होना चाहिए और देश की भलाई के लिए राष्ट्र को केंद्र में रखना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में अनुसंधान, भारत में नवाचार और भारत में डिजाइन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे विकास का मूल आर्थिक राष्ट्रवाद है। भारतीय कच्चे माल के निर्यात की मात्रा पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने हितधारकों से बिना मूल्य संवर्धन के हमारे कच्चे माल का निर्यात न करने की आर्थिक नैतिकता विकसित करने का आग्रह किया।

मोहाली में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस लीडरशिप समिट 2024 को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया में भारत के उदय का मतलब होगा वैश्विक शांति, वैश्विक स्थिरता और वैश्विक सद्भाव। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की सदी आधिपत्य या प्रभुत्व की नहीं बल्कि वैश्विक सार्वजनिक भलाई की हिमायती है। भारत की सदी में नेतृत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि भारत को अगली पीढ़ी के नेताओं की जरूरत है जो नवाचार और बदलाव ला सकें। उन्होंने ऐसे नेताओं को तैयार करने पर भी जोर दिया जो भारतीय और वैश्विक समस्याओं के लिए भारतीय समाधान खोजें और रोजमर्रा के जीवन में भारतीयों को आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए साझेदारी बनाएं।

उपराष्ट्रपति ने विचारों के खतरों पर प्रकाश डाला और इसे “मधुमेह के रोगी को सख्त चीनी देने” जैसा बताया. उन्होंने कहा, “यह देश के बाहर से दुश्मनों को पैदा कर रहा है वो भी जीवन को सस्ता बनाकर।” उन्होंने युवा नेताओं को फेलोशिप, विजिटिंग प्रोग्राम और विश्वविद्यालय संबद्धता के माध्यम से चालाकी से तैयार किए जाने की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में चेताया और कहा कि उन्हें गुमराह किया जा रहा है।

उपराष्ट्रपति ने विचारधारा के खतरों पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि यह केवल उनके जीवन की कीमत पर बाहर से राष्ट्र के दुश्मन पैदा कर रहा है। उन्होंने युवाओं को फैलोशिप, विजिटिंग प्रोग्राम और विश्वविद्यालय संबद्धता के माध्यम से हेरफेर और तैयार किए जाने की बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि उनका ब्रेनवॉश किया जा रहा है।

श्री धनखड़ ने नेतृत्व प्रशिक्षण में राष्ट्रवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और संस्थानों से आग्रह किया कि वे इसे नेतृत्व कार्यक्रमों के मुख्य घटक के रूप में शामिल करें। राष्ट्रवाद को नेतृत्व पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि वास्तव में यह सबसे महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम है। राष्ट्रवाद के लिए प्रतिबद्ध व्यक्ति इन चालों को विफल करने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि इसका हिस्सा बनकर वह अपनी रीढ़ की हड्डी पर भी खड़ा हो सकेगा और इस माध्यम से ऐसी ताकतों को बेअसर कर सकेगा।

 जमीनी स्तर के नेतृत्व के महत्व का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र गांव और नगरपालिका स्तर तक फैला हुआ है। उन्होंने कहा, “हमारे पास अब गांव के स्तर पर संवैधानिक रूप से संरचित नेतृत्व है, क्योंकि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां गांव के स्तर पर, नगरपालिका के स्तर पर संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र है। अधिकांश देशों में राज्य और केंद्रीय स्तर पर व्यस्थापिका हैं।”

श्री धनखड़ ने कहा कि भारतीय प्रतिभाएँ वैश्विक स्तर पर लगातार खरी उतर रही है और जब कॉर्पोरेट प्रमुखों की बात आती है तो भारतीय मानव संसाधन की वैश्विक चर्चा होती है। उन्होंने पिछले दशक में भारत में आए बदलावों पर प्रकाश डाला और कहा कि 8% विकास क्षमता के साथ भारत 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन गई, चार नए हवाई अड्डों के साथ बुनियादी ढांचे का विस्तार हुआ है, हर साल एक मेट्रो प्रणाली का निर्माण हुआ है, सबसे कम समय में 500 मिलियन बैंक खाते खोले गए, हर महीने 6.5 बिलियन डिजिटल लेन-देन हुए।

श्री धनखड़ ने इस बात पर भी जोर दिया कि शासन केवल पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों से तय होता है और युवाओं के पास अब एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र है जहाँ वे अपनी प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि सत्ता के गलियारे भ्रष्ट तत्वों से पूरी तरह से मुक्त हो चुके हैं। युवाओं को भावी नेता बताते हुए उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे पूरे समर्पण के साथ राष्ट्र की सेवा करें और राष्ट्र के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद के अगुवा बनें।

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