Today

नोमेन्द्र कुमार साहू की कृषि नवाचार: कम पानी और कम लागत में अधिक आय का राज

Report by manisha yadav

धमतरी, देश, प्रदेश सहित जिले में भी लगातार भूजल स्तर का नीचे जाना चिंता का विषय हो गया। गर्मियों में कभी रविशंकर जलाशय गंगरेल बांध का पानी कम नहीं होता था, वह भी कम होने लगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर जिलेवासियों ने जल संरक्षण की दिशा में अनेक कदम उठाए। लोगों ने जहां बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, रिचार्ज स्ट्रक्चर इत्यादि बनाए, वहीं किसानों ने भी बढ़-चढ़कर फसल चक्र अपनाने की दिशा में अपना कदम बढाया। इसके तहत ग्रीष्मकालीन धान के बदले कम पानी वाली फसल की ओर अग्रसर होने लगे।

नोमेन्द्र के गेंदे की फूलों की जिले में ही नहीं, बल्कि अन्य जिलों में भी बिखेर रही अपनी खुशबू

ऐसे ही जागरूक और संवेदनशील किसान हैं कुरूद विकासखण्ड के ग्राम चटौद निवासी नोमेन्द्र कुमार साहू। नोमेन्द्र बताते हैं कि वे अपने खेतों में पानी कम लगने वाले फसल लगाने के बारे में सोचा और गेंदे के फूल की खेती करने की मन में ठानी तथा इसके लिए उद्यानिकी विभाग से सलाह ली। इस पर उद्यानिकी विभाग द्वारा गेंदे के फूलों में लगने वाले लागत, फूलों की खेती करने के तरीके इत्यादि की जानकारी दी गई। नोमेन्द्र द्वारा अपने खेत में गेंदा (किस्म कलकतिया) की खेती ड्रिप पद्धति से पिछले तीन साल से की जा रही है। वर्ष 2024-25 में नोमेन्द्र साहू को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत गेंदा फूल क्षेत्र विस्तार अंतर्गत 8 हजार रूपये की अनुदान राशि प्रदाय की गई। उन्होंने बताया कि इसके पहले वे धान की खेती करते थे, जिसमें लागत अधिक था और पानी का खपत भी अधिक था। साथ ही देखभाल भी अधिक करना पड़ता था। इसके बाद वे उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया और उद्यानिकी विभाग से नोमेन्द्र को ड्रिप अनुदान के रूप में प्रदाय किया गया। नोमेन्द्र कहते हैं कि गेंदे की खेती ऐसी है, जिसमें खेती के दो माह बाद से ही आमदनी मिलनी शुरू हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक एकड़ गेंदे की खेती में लागत 50 हजार रूपये तक आता है, जबकि एक सीजन में ढाई से तीन लाख रूपये तक का गेंदे के फूल बेच सकते हैं। इस तरह एक एकड़ गेंदे के फूल की फसल में शुद्ध दो लाख रूपये तक की आमदनी हम प्राप्त कर सकते हैं। बाजार में फूलों की मांग काफी है, नोमेन्द्र के फूल ना केवल धमतरी जिले में बल्कि अभनपुर, नवापारा, राजिम इत्यादि में भी बिक्री होने जाता है।
                  फूलों का नाम आते ही खुशबू का अहसास और मन प्रसन्न होने लगता है, लेकिन जब इन्हीं फूलों की खेती की कमाई से आर्थिक लाभ होने लगे तो चेहरे पर खुशियों की मुस्कान बिखर जाती है। शासन द्वारा खेती-किसानी को माटीपुत्रों के लिए लाभ का व्यावसाय बनाने के लिए अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही है, इन योजनाओं का लाभ लेकर प्रदेश के माटीपुत्र आर्थिक रूप से समृद्ध होने लगे हैं। गेंदे के फूलों की खेती करके इसे साबित किया है जिले के चटौद के किसान नोमेन्द्र कुमार साहू ने।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *