Report by manisha yadav
महासमुंद। महासमुंद जिले के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में स्थित हरदा गांव में पीने के पानी की समस्या लंबे समय से ग्रामीणों के लिए चुनौती बनी हुई थी। लेकिन जल जीवन मिशन के तहत किए गए विशेष प्रयासों से आज हरदा गांव को “हर घर जल“ गांव के रूप में घोषित कर दिया गया है। यह सफलता न केवल गांव के विकास की निशानी है, बल्कि ग्रामीणों के जीवन में एक नया अध्याय भी है।
पहले ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दराज के जलस्रोतों से पानी लाना पड़ता था। महिलाओं को रोज़ाना लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी, जिससे उनका समय और ऊर्जा नष्ट होती थी। जल स्रोत सीमित होने और सुविधाएं न होने के कारण कई बार ग्रामीणों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। कार्यपालन अभियंता देव प्रकाश वर्मा के मार्गदर्शन में हरदा में घर-घर तक पानी पहुंचाने के लिए नल कनेक्शन बिछाने का कार्य तेजी से पूरा किया गया। वनांचल क्षेत्र होने के कारण पाइप लाइन बिछाने में चुनौतियां जरूर आईं, लेकिन अधिकारियों और पंचायत के समर्पण ने इस कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न किया।
गांव में सभी घरों तक नल कनेक्शन पूरा होने के बाद ग्राम पंचायत हरदा में “हर घर जल उत्सव“ मनाया गया। इस कार्यक्रम में सरपंच मोंगरा बाई जगत और सचिव अमर सिंह सिदार ने इस उपलब्धि की जानकारी ग्रामीणों के साथ साझा की। अब गांव के हर घर में पाइपलाइन के माध्यम से शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा रहा है। इस योजना से पानी की कमी की समस्या पूरी तरह खत्म हो गई है, जिससे ग्रामीणों की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आया है। योजना के संचालन के लिए ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति का गठन किया गया है, जिसे अब पानी की आपूर्ति की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई है। ठेकेदार से संचालन की जिम्मेदारी पंचायत को सौंपते हुए गांव के पंप ऑपरेटर का चयन भी किया गया है। पंप ऑपरेटर के मानदेय और रखरखाव के लिए प्रति घर 40 रुपये का मासिक शुल्क तय किया गया है।
इस अवसर पर सरपंच, सचिव, मितानिन दीदियों, जिला समन्वयक, और ग्रामीणों ने उत्सव के रूप में जल की इस उपलब्धि का जश्न मनाया। सभी ने मिलकर यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया कि गांव में पानी की आपूर्ति निरंतर बनी रहे और भविष्य में किसी को जल संकट का सामना न करना पड़े। हरदा गांव अब “हर घर जल“ का सफल मॉडल बन गया है, जहां हर घर में पीने का साफ पानी उपलब्ध है। इस परियोजना ने गांव के जीवन को खुशहाल बना दिया है। महिलाओं को अब पानी के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ती, और उनके समय की बचत से वे अन्य गतिविधियों में अधिक योगदान दे रही हैं।