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सीरिया की सेदनाया जेल को असद ने कत्लखाना बना दिया था

पांच दशक के असद परिवार के शासन के बाद सीरिया में तख्तापलट हो गया है। विद्रोहियों ने बशर अल असद की सरकार को उखाड़कर फेंक दिया और सीरिया में शासन बदलने का ऐलान कर दिया। अलेप्पो के बाद हमा और फिर राजधानी दमिश्क को भी विद्रोहियों ने अपने कब्जे में ले लिया। वहीं राष्ट्रपति रहे असद देश छोड़कर भाग निकले हैं। 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस शासन में करीब 1 लाख से ज्यादा लोगों की जेल में ही मौत हो गई। इसमें से अकेले सेदनाया जेल में 30 हजार लोगों की हत्या कर दी गई। सेदनाया जेल को असद के कत्लखाने के तौर पर जाना जाता था।

रिपोर्ट में बताया गया कि 2011 में विद्रोह के बाद बहुत सारे लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था और जेलों में ठूस दिया गया था। ऐमनेस्टी की रिपोर्ट के मुताबिक सेदनाया में दो डिटेंशन सेंटर बनाए गए थे। विद्रोह करने वालों को गिरफ्तार किया जाता था और जेल में भर दिया जाता था। विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से कई सैनिकों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।

रिपोर्ट में कहा गया कि जेल के बहुत सारे कैदियों को चुपचाप मौत के घाट उतार दिया गया। कोर्ट में सुनवाई ही चलती रहती थी और सजा के ऐलान से पहले ही कैदी की मौत हो जाती थी। कैदियों को बताया जाता था कि उन्हें आज सिवीलियन जेल में ले जाया जाएगा। इसके बाद उन्हें अंडरग्राउंड में ले जाया जाता था और जमकर पिटाई होती थी। इसके बाद उनकी आंख पर पट्टी बांधकर ट्रकों में लाद दिया जाता था और एक दूसरी जगह ले जाया जाता था। इसके बाद एक तहखाने में ले जाकर फांसी दे दी जाती थी।

हफ्ते या फिर दो हफ्ते में एक बार यह प्रक्रिया दोहराई जाती थी। एक बार में करीब 20 से 50 लोगों को फांसी दे दी जाती थी। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कैदियों की आंख पर पट्टी बंधी रहती थी। उन्हें इस बात की भनक भी नहीं रहती थी कि आज ही उनकी फांसी होने वाली है। फांसी के बाद उनके शवों को ट्रक में लोडकर तिश्रीन अस्पताल पहुंचाया जाता था और इसके बाद सामूहिक रूप से दफना दिया जाता था।

एमनेस्टी की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2011 से दिसंबर 2015 तक 13 हजार लोगों की इसी तरह से हत्या कर दी गई। हालांकि दिसंबर 2015 के बाद इस तरह की हत्या के सबूत एमनेस्टी के पास नहीं है। हालांकि रिपोर्ट्स में कहा गया कि 2015 के बाद बेहद गुप्त तरीके से लोगों को मौत के घाट उतारा जाता था। अधिकारियों का कहना है कि सीरिया के मुफ्ती, रक्षा मंत्री या फिर सेना के कमांडर के इशारे पर ही मौत की सजा दी जाती थी। ये सभी लोग असद के इशारे पर काम करते थे।

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