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एसीबी/ईओडब्ल्यू की कार्रवाई जारी, तेंदूपत्ता घोटाले में तेलगुभाषी अधिकारी की भूमिका पर संदेह

Report by manisha yadav

रायपुर। तेन्दूपत्ता बोनस में करोड़ों के गबन और रैकेट बनाकर लूट का मामला सुर्खियों में है। एसीबी और ईओडब्ल्यू ने सुकमा के डीएफओ अशोक पटेल समेत कई प्रबंधकों और वन विभाग के अधिकारियों के यहां छापेमारी की है जिसमें एक कर्मचारी के यहां 26 लाख नगद बरामद भी किया गया। पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के यहां भी छापा मारा गया। जानकारी के अनुसार वर्ष 2021 में 15 फड़ और 2022 में 10 फड़ के संग्राहकों को बोनस की राशि मिलनी थी जिसमें 3 करोड़ 62 लाख रूपए उन संग्राहकों को नकद देने थे, जिनके बैंक खाते नहीं हैं। यहीं से गरीबों की राशि डकारने का काम शुरू हुआ।
जंगल विभाग में हमेशा कार्रवाही के नाम पर ठेंगा दिखाते हुए नीचे के अधिकारी और कर्मचारियों पर गाज गिरती है, मगर वो उच्चाधिकारी कभी इस जद में नही आते जिनके निर्देशन में इस तरीके के घोटाले हुए है। उक्त घोटाले में डीएफओ निलंबित तो कर दिए गए मगर इसके ऊपर के अधिकारी जिसके मार्गदर्शन में यह पूरे घोटाले के खेल को रचा गया उन पर क्या कार्रवाही होगी? जबकिं मनीष कुंजाम ने भी अपने बयान में स्पष्ट किया कि जंगल विभाग के एक बड़े अधिकारी का फोन आया था जिन्होंने उन्हें पैसे का ऑफर किया था। सूत्र बताते है कि इस पूरे घोटाले का मुख्य किरदार एक तेलगुभाषी अधिकारी है जो इस समय जंगल विभाग के सबसे उच्च पद पर आसीन है । तेलगु भाषा की समझ के कारण यह अधिकारी खुद ही मामले की डील कर रहा था।
32 हजार संग्राहकों में बंटना था 4 करोड़ 80 लाख
वर्ष 2021-22 में तेंदुपत्ता बोनस की राशि मार्च 2024 में समिति प्रबंधको के खाते में आ गई थी इसके बाद यह राशि तेंदुपत्ता संग्राहकों को नगदी बांटी जानी थी चूंकि इन संग्राहकों के पास अपने निजी खाते की व्यवस्था नही थी। इसी का फायदा उठाते हुए वन अमले ने पूरा खेल खेलना शुरू किया। जिस तेलगुभाषी अधिकारी की हम बात कर रहे है उनका नाम है श्रीनिवासन राव जो उस समय और वर्तमान में भी प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद पर थे। मामला भले ही 2020-21 का है लेकिन राशि का आहरण श्रीनिवासन राव के समय में हुआ, श्रीनिवासन राव 31 जुलाई 2023 को पीसीसीएफ बन गए थे, इसके बाद ही राशि समिति प्रबंधको के खाते में आई। बताते है कि यह अधिकारी शिकायतकर्ताओं, मीडियाकर्मी और नेताओं को राजधानी बुलाकर डील किया करता था। इस तेंदुपत्ता बोनस में सीधा इंटरेस्ट श्रीनिवासन राव का था जो संग्राहकों के पैसे को दबाकर खुद की जेब भरना चाहता था। मामले की शिकायत जब पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने की तो उनको भी पैसों का ऑफर दिया गया और खूब मानमनउल की कोशिश की गई लेकिन अब मामला एसीबी/ईओडब्ल्यू की जांच में आ गया है।
क्या है नियम –
तेंदुपत्ता बोनस के संदर्भ में (पीसीसीएफ) की भूमिका मुख्य रूप से नीतिगत और प्रशासनिक होती है। पीसीसीएफ, वन विभाग के सर्वोच्च अधिकारी के रूप में, तेंदुपत्ता संग्रहण, उसकी बिक्री और इससे संबंधित बोनस वितरण की प्रक्रिया की निगरानी करते हैं। जिसमे पीसीसीएफ तेंदुपत्ता बोनस की राशि, वितरण प्रक्रिया और पात्रता मानदंड तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे सरकार और वन विभाग के बीच समन्वय बनाकर नीतियों को लागू करते हैं। साथ ही बोनस राशि के आबंटन और वितरण के लिए पीसीसीएफ की स्वीकृति आवश्यक होती है, विशेषकर जब यह राशि राज्य सरकार या केंद्र सरकार के बजट से जुड़ी हो। पीसीसीएफ यह सुनिश्चित करते हैं कि बोनस वितरण पारदर्शी और निष्पक्ष हो। वे संग्राहकों तक राशि पहुंचने की प्रक्रिया की देखरेख करते हैं और किसी भी अनियमितता की जांच कर सकते हैं। नियमत: किसी भी सामान्य परिस्थितियों में पीसीसीएफ के बिना बोनस राशि का आहरण संभव नहीं होता, क्योंकि पीसीसीएफ वन विभाग के प्रमुख होने के नाते, बोनस राशि के आबंटन और वितरण के लिए उनकी स्वीकृति अनिवार्य होती है। यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसमें उच्च-स्तरीय अनुमोदन जरूरी है।
एसीबी/ईओडब्ल्यू की जांच क्या पहुँचेगी राव तक
केंद्रीय जांच एजेंसियों को भले ही तोता कहा जाता हो मगर एसीबी/ईओडब्ल्यू की टीमो की अपनी विश्वसनीयता, रुतबा और एक औरा है जिस पर इस तरह के आरोप नही लगे है तो यकीन किया जा सकता है कि मामले की जांच निष्पक्षता के साथ करेगी। अब देखना यह है कि क्या यह जांच एजेंसी पूछताछ के लिए श्रीनिवासन राव तक पहुँचेगी की नही या नीचे के कर्मचारी/अधिकारी पर भी अटकी रहेगी। उक्त अधिकारी की आय संपत्ति, कॉल डिटेल, अन्य राज्यो में इनके कारोबार की अगर जांच की जाएगी तो शायद जांच एजेंसी के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। बहरहाल देखना होगा कि यह जांच टीम कितनी निष्पक्षता से जांच करती है और कौन – कौन इसकी जद में आता है।

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