Report by manisha yadav
रायगढ़। अब सरकारी नौकरियों में योग्यता मापदंड नहीं है बल्कि सांठगांठ जरूरी है। कहीं भर्ती में फर्जीवाड़ा होता भी है तो प्रशासन उसको ऐसे उलझा देगा कि ईमानदार और योग्य व्यक्ति खुद ही थककर बैठ जाएगा। भूतपूर्व कलेक्टर ने पशु चिकित्सा विभाग में नियुक्ति घोटाले की जांच कर निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट ने भी रिपोर्ट को निरस्त किए बिना दोबारा जांच कर अपात्रों को हटाने का आदेश दिया। इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो अवमानना का केस लगा। उसके बाद भी तीन महीने का समय दिया गया था लेकिन जांच नहीं की गई। पशुपालन विभाग में भर्ती घोटाले को प्रशासन ने उलझा दिया है। 15 फरवरी 2024 को पशुपालन विभाग में भर्ती घोटाले की सुनवाई हुई थी, जिसमें अदालत ने छह महीने में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने व कार्रवाई करने का आदेश दिया था, लेकिन जांच नहीं हुई।
फाइल पूर्व अपर कलेक्टर राजीव पांडेय ने अपने पास रख ली। इस बीच रुपलाल पटेल निवासी कछार, रायगढ़ ने कन्टेम्प्ट पिटीशन दायर की। 12 सितंबर 2024 को इसकी सुनवाई होनी थी तो जवाब देने के लिए 5 सितंबर को एक नई कमेटी बना दी गई। अदालत में बताया गया कि 5 सितंबर को एक जांच कमेटी का गठन किया गया है जो कार्रवाई करेगी। न्यायाधीश नरेंद्र कुमार व्यास ने आदेश दिया था कि इस मामले में शासन ने 5 सितंबर 2024 को कमेटी बनाई है। इसलिए 12 सितंबर से तीन महीने के अंदर जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने के बाद अंतिम कार्रवाई की जाए, लेकिन अभी तक मामला लंबित है।
ऐसे हुई थी गड़बड़ी
वर्ष 2012 में स्वच्छकर्ता/परिचारक सह चौकीदार के 32 पदों पर नियुक्ति होनी थी, लेकिन तत्कालीन उप संचालक डॉ. एसडी द्विवेदी ने लिखित परीक्षा लेने का आदेश दिया। परीक्षा के बाद 32 के बजाय 44 को ज्वाइनिंग लेटर दे दिए गए। विभाग में कार्यरत लोगों के रिश्तेदारों की नियुक्ति कर दी। एक आवेदक आनंद विकास मेहरा ने नियुक्ति में अनियमितता की शिकायत तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल से की थी। कलेक्टर ने गड़बड़ी मिलने पर 27 सितंबर 2012 को नियुक्ति निरस्त कर दी। इसके खिलाफ 44 लोगों ने अपील की थी। अदालत ने 15 फरवरी 2024 को अंतिम फैसला देते हुए कहा कि मामले की छह महीने में जांच कर गलत नियुक्ति वालों को सेवा से हटाया जाए।
डॉ. झरिया और डॉ. तांती की क्या है भूमिका
तत्कालीन उप संचालक डॉ. एसडी द्विवेदी ने चालाकी की थी। हाईकोर्ट से स्थगन दिलाने के लिए सिर्फ 3 कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस दिया गया। बाकी 41 कर्मचारियों को बिना नोटिस के जल्दबाजी करके तथा सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिए बिना बर्खास्त किया गया। उच्च न्यायालय से स्टे भी मिल गया। डॉ. द्विवेदी ने अपने जमानत आवेदन में इसे स्वीकार किया गया है। हाईकोर्ट में 12 वर्षों तक चले प्रकरण के अंतिम फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन में गड़बड़ी पाई गई, रिजर्वेशन पॉलिसी का पालन नहीं किया गया, पदों की संख्या के विरुद्ध ज्यादा नियुक्तियां की गई और चयन प्रक्रिया भी बदल दी गई। नए सिरे से नोटिस जारी कर बर्खास्त करने की कार्रवाई की जानी थी। इस मामले में उप संचालक डॉ. धरमदास झरिया और डॉ. सूरज तांती ने शहर के एक गार्डन में बैठक ली थी।