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ईसा मसीह के बलिदान का दिन: गुड फ्राइडे पर चर्चों में शोक और प्रार्थना का माहौल

Report by manisha yadav

जीसस क्राइस्ट पूर्व एवं पश्चिम दोनों के बीच का एक संपर्क हैं। वे महान गुरु मेरी आंखों के सम्मुख खड़े हैं और पूर्ववासियों तथा पश्चिमवासियों से कह रहे हैं, ‘एक साथ मिल जाओ! मेरे शरीर ने पूर्व में जन्म लिया था, मेरी आत्मा और संदेश पश्चिम की ओर फैले।’

एशियावासी के रूप में क्राइस्ट का जन्म लेने और पश्चिमी लोगों का उन्हें अपना गुरु स्वीकार करने में, एक दैवी संकेत है ताकि पूर्व एवं पश्चिम के लोग अपनी-अपनी सर्वोत्तम उत्कृष्ट विशेषताओं का आदान-प्रदान कर मिल जाएं। यह ईश्वर की लीला का ही एक अंग है कि पश्चिम को भौतिक शक्तियों से संपन्न होना था और पूर्व को आध्यात्मिक शक्तियों से, ताकि उनके विशिष्ट गुणों के आदान-प्रदान से दोनों में मित्रता हो सके। पूर्व की आध्यात्मिक स्वाधीनता भौतिक दुखों का दमन करती है। पश्चिम को उसी प्रकार की आध्यात्मिक स्वाधीनता की आवश्यकता है। ईश्वर की पश्चिमी संतानों को शारीरिक और भौतिक रूप से अधिक भाग्यशाली होने के कारण उन्हें आध्यात्मिक रूप से विकसित होने की, और पूर्व के आध्यात्मिक ज्ञान को पाने की आवश्यकता है, और पूर्व को पश्चिम के भौतिक विकास की आवश्यकता है। ईश्वर की पूर्व में रहने वाली संतानों को पश्चिम से सहायता का स्वागत करना चाहिए, ताकि वे एशिया का उद्योगीकरण कर सकें, और इस प्रकार उसे उन्नत होने और अपने संसाधनों का पूर्ण लाभ उठाने के योग्य बना सकें।

क्राइस्ट इतिहास के ऐसे संकटकाल में आए थे, जब संसार को आध्यात्मिक आशा और पुनरुत्थान की अत्यधिक आवश्यकता थी। उन्होंने मानव जाति को स्मरण कराया कि धर्मशास्त्रों में लिखा है, ‘आप देवता हैं;’ और संत यूहन्ना ने क्राइस्ट की शिक्षाओं, प्रेरणा और भाव का प्रचार किया, जब उन्होंने कहा, ‘बल्कि जितने भी लोगों ने उसे (जीसस और समस्त सृष्टि में व्याप्त क्राइस्ट चेतना को) प्राप्त किया, उन सबको उसने ईश्वर का पुत्र बनने की शक्ति प्रदान की।’ क्या ऐसा महान संदेश पहले कभी दिया गया था? जीसस ने सभी दलित वर्गों, गोरे और काले व्यक्ति, पूर्व और पश्चिमवासी को विश्वास दिलवाया कि वे सब ईश्वर की संतान हैं, जिसका भी हृदय पवित्र है, चाहे वह किसी भी जाति अथवा रंग का हो, ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

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