Report by manisha yadav
रायपुर. साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाएगा. इस घोषणा के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि पुरस्कार से मुझे बहुत खुशी हुई है. उन्होंने कहा कि पुरस्कार की जिम्मेदारी को मैंने महसूस किया. जितना मुझे लिखना चाहिए था, उतना मैं लिख नहीं पाया. मैं कोशिश करूंगा कि जो शेष रह गया, उसे आगे बढ़ाऊं. जो अभी मैं सोच रहा हूं, उसको लिख सकूं, ऐसा मेरे मन में आता है…
अपनी जिंदगी की एक किताब जरूर लिखनी चाहिए
उन्होंने कहा कि बहुत अच्छा लगता है, खुश होता हूं, बड़ी उथल-पुथल है कि यह पुरस्कार कैसा लगा, बहुत बढ़िया लगा… मेरे पास शब्द नहीं है कहने के लिये… एक जिम्मेदारी सी महसूस होती है. परिवारिक कारणों और आस-पास के माहौल में भी लिखना बहुत मुश्किल है, लेकिन कोशिश करनी चाहिए. अपनी जिंदगी की एक किताब जरूर लिखनी चाहिए. ताकि आप दुनिया के बारे में क्या सोचते हैं लोग जान सके.
बता दें, हिंदी के प्रख्यात कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जाएगा. ज्ञानपीठ समिति ने आज नई दिल्ली में इसकी घोषणा की. यह सम्मान पाने वाले छत्तीसगढ़ के वह पहले साहित्यकार होंगे. प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उन्हें बधाई दी है. उन्होंने कहा कि यह छत्तीसगढ़ के लिये गौरव की बात है.
लगभग जयहिंद’ कविता से मिली पहचान
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में हुआ था. फिलहाल वे रायपुर में ही रहते हैं. पिछले 50 सालों से वे लिख रहे हैं. उनकी पहली कविता “लगभग जयहिंद” 1971 में प्रकाशित हुई थी और तभी से उनकी लेखनी ने साहित्य जगत में अपना अलग स्थान बना लिया था.
कैसे कह दूं कि बहुत मीठा लगा : विनोद कुमार शुक्ल
पुरस्कार को लेकर उन्होंने आगे कहा कि अगर मैं कहूं कि बहुत मीठा लगा कहूंगा, तो मैं तो शुगर का मरीज हूं… तो मैं कैसे कह दूं, कि बहुत मीठा लगा… उन्होंने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है.