राजस्थान के भरतपुर में विख्यात केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पक्षी अभयारण्य है. जो कि 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है और इस उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था. इस अभयारण्य के बीचों बीच भगवान केवलादेव का मंदिर है, जिस पर इस उद्यान का नामकरण हुआ है. केवलदेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत का दर्जा मिल है पर इसका अब ये दर्जा खतरे में है, जिसका प्रमुख कारण जल संकट को माना जा रहा है.

विश्व विरासत पर संकट की वजह
मनुष्य हो या पशु पक्षी सभी के लिए पानी के बिना जीवन मुश्किल है. ऐसे में केवलादेव के पक्षियों के लिए भी पानी की समस्या खड़ी हो रही है. पहले उद्यान को पांचना बांध से भरपूर पानी मिलने के साथ ही पक्षियों के लिए मछलियों के पर्याप्त रूप में भरपूर भोजन मिलता था, लेकिन पांचाना बांध की दीवारें ऊंची होने के चलते इस बांध को कम पानी मिल पाता है. यहां गोवर्धन ड्रेन और चंबल पेयजल योजना से पूर्ति की जा रही है.
तीन सदस्यीय टीम कर रही निरीक्षण
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की तीन सदस्यीय टीम उद्यान पहुंचकर निरीक्षण कर रही है. जल संकट को लेकर आईयूसीएन पहले भी पत्र भेज चुकी थी, अब हालात देखने के लिए टीम आई है. यह टीम रिपोर्ट आईयूसीएन को सौंपेगी और उसके बाद निर्णय होगा कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत का दर्जा जारी रखना चाहिए या छीन लेना चाहिए.
आईयूसीएन की जो टीम राष्ट्रीय उद्यान का निरीक्षण कर रही है, उसमें दो सदस्य ब्रिटेन और मंगोलिया से हैं और एक सदस्य वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून से. टीम यहां पानी का प्रबंधन, उसकी उपलब्धता, यहां आने वाले पक्षियों की प्रजाति, कम हो रही प्रजातियों, जैव विविधता समेत तमाम पहलुओं पर जानकारी जुटा रही है.